नई दिल्ली: चंदा कोचर वीडियोकॉन रिश्वत मामला अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। एक अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal) ने ICICI बैंक की पूर्व CEO और MD चंदा कोचर को दोषी ठहराते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच और संपत्तियों की कुर्की को सही ठहराया है। न्यायाधिकरण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि चंदा कोचर ने वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का लोन मंजूर कराने के बदले में ₹64 करोड़ की रिश्वत स्वीकार की थी, जो ‘क्विड-प्रो-क्वो’ लेन-देन का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला 2009 का है जब ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को ₹300 करोड़ का लोन मंजूर किया था। इस मंजूरी के कुछ ही समय बाद, वीडियोकॉन की एक इकाई SEPL से ₹64 करोड़ रुपए NuPower Renewables Pvt Ltd (NRPL) को ट्रांसफर किए गए। यह कंपनी चंदा कोचर के पति दीपक कोचर द्वारा नियंत्रित थी।
हालांकि कागजों पर NRPL के मालिकाना हक को वीडियोकॉन ग्रुप के चेयरमैन वी. एन. धूत के नाम पर दिखाया गया था, लेकिन न्यायाधिकरण ने माना कि असली नियंत्रण दीपक कोचर के पास ही था।
हितों के टकराव की अनदेखी
ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में कहा कि चंदा कोचर ने लोन मंजूरी समिति की सदस्य होने के बावजूद अपने पति की संबंधित कंपनी से संबंधों को छिपाया, जो ICICI बैंक की आंतरिक नीतियों का सीधा उल्लंघन है।
यह भी कहा गया कि यह रिश्वतखोरी और शक्तियों के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला है, जिसमें चंदा कोचर की मिलीभगत साफ दिखाई देती है।
सबूतों ने की पुष्टि
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में PMLA (Prevention of Money Laundering Act) की धारा 50 के तहत दर्ज बयानों और दस्तावेज़ी साक्ष्यों को पेश किया, जिन्हें न्यायाधिकरण ने वैध और भरोसेमंद माना। इन साक्ष्यों ने साबित कर दिया कि लोन मंजूरी, फंड ट्रांसफर और रिश्वत की प्रक्रिया एक ही योजना का हिस्सा थे।
न्यायाधिकरण ने क्या कहा?
3 जुलाई 2025 को दिए गए विस्तृत आदेश में अपीलीय न्यायाधिकरण ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के तर्कों को स्वीकारते हुए कहा कि:
- यह लेन-देन एक स्पष्ट रूप से योजना बनाकर किया गया ‘क्विड-प्रो-क्वो’ रिश्वत लेन-देन है।
- चंदा कोचर ने लोन मंजूरी समिति की सदस्य होते हुए भी अपने पति के साथ जुड़ी कंपनी की जानकारी छुपाई, जो कि बैंक की आंतरिक नीति के खिलाफ है।
- NRPL की असली कमान दीपक कोचर के पास थी, भले ही कागज़ों पर मालिक कोई और हो।

पूर्व राहत पर कड़ी टिप्पणी
न्यायाधिकरण ने नवंबर 2020 के उस आदेश की तीखी आलोचना की, जिसमें निर्णायक प्राधिकरण ने चंदा कोचर और उनके सहयोगियों की ₹78 करोड़ की संपत्तियों को रिहा करने का आदेश दिया था। ट्रिब्यूनल ने कहा कि वह आदेश तथ्यों की अनदेखी पर आधारित था और उसके निष्कर्षों को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट किया कि ED द्वारा की गई संपत्ति कुर्की न्यायसंगत थी और यह भ्रष्टाचार और अनैतिक लेन-देन की मजबूत कड़ी पर आधारित थी।
क्या है क्विड-प्रो-क्वो?
‘Quid Pro Quo’ एक लैटिन शब्द है, जिसका मतलब है – “बदले में कुछ”। इसे सरल भाषा में समझें तो जब कोई व्यक्ति किसी को लाभ पहुंचाता है और बदले में उससे कोई और लाभ प्राप्त करता है, तो यह क्विड-प्रो-क्वो कहलाता है। चंदा कोचर ने बैंक की शक्तियों का उपयोग कर वीडियोकॉन को लोन दिया और बदले में उनके पति की कंपनी को आर्थिक लाभ पहुंचा — यही इस मामले की मूल भावना है।
निष्कर्ष: एक चेतावनी और संदेश
चंदा कोचर वीडियोकॉन रिश्वत मामला भारतीय बैंकिंग और कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए एक चेतावनी है। जब बैंक के शीर्ष अधिकारी ही पद का दुरुपयोग करें, तो आम जनता का विश्वास डगमगाने लगता है।
इस फैसले से यह साफ हो गया है कि चाहे व्यक्ति कितनी भी बड़ी पोस्ट पर हो, कानून से ऊपर कोई नहीं। ट्रिब्यूनल का यह निर्णय पारदर्शिता और जवाबदेही की ओर एक बड़ा कदम है, जो आने वाले समय में बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्रों में नीतिगत बदलावों की दिशा तय कर सकता है।