फरीदाबाद — स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत जारी स्वच्छता सर्वेक्षण 2024-25 में फरीदाबाद ने जहां 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहरों की श्रेणी में दो स्थान की छलांग लगाकर 34वां रैंक हासिल किया है, वहीं ‘गार्बेज फ्री सिटी’ (GFC) कैटेगरी में लगातार दूसरी बार शून्य स्टार रेटिंग मिलने से नगर निगम की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है।
शून्य रेटिंग: एक चेतावनी नहीं, एक गंभीर संकेत
नगर निगम हर वर्ष 140 करोड़ रुपये से अधिक की राशि स्वच्छता पर खर्च करता है। इसके बावजूद, GFC रेटिंग में लगातार शून्य स्टार मिलने का मतलब है कि कचरा प्रबंधन की मूलभूत व्यवस्थाएं अभी भी धरातल पर नहीं उतरीं।
डोर-टू-डोर कलेक्शन, कचरे का स्रोत पर पृथक्करण और वैज्ञानिक निस्तारण जैसी मूलभूत प्रक्रियाएं अभी भी अधूरी हैं।
संसाधनों की कमी और खराब निगरानी बनी बड़ी बाधा
शहर की सफाई व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जहां 6,000 सफाई कर्मचारियों की जरूरत है, वहीं मौजूदा संख्या 4,000 से भी कम है। इनमें से कई कर्मी गैर-आधिकारिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं, जिससे ज़मीनी स्तर पर सफाई बाधित होती है।
इसके अलावा, स्मार्ट डस्टबिन, ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी और कचरा वाहनों की भी भारी कमी है।
381वीं रैंक और राज्य में 19वां स्थान — आंकड़े बोलते हैं
पिछले सर्वेक्षण में फरीदाबाद को राष्ट्रीय स्तर पर 446 शहरों में 381वां स्थान और हरियाणा के 20 शहरों में 19वां स्थान मिला था। यह साफ दर्शाता है कि बजट से ज़्यादा कार्यप्रणाली की पारदर्शिता और ज़मीनी क्रियान्वयन पर फोकस करने की जरूरत है।
एजेंसी बदली, लेकिन हालात नहीं
नगर निगम द्वारा पूर्व में नियुक्त कचरा संग्रहण एजेंसी को खराब प्रदर्शन के चलते ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था। अब ₹200 करोड़ का नया प्रस्ताव चंडीगढ़ में लंबित है, और पीपीपी मॉडल के तहत जल्द ही नए ठेकेदार की नियुक्ति संभावित है।

कचरे के ढेर बने शहर के हॉटस्पॉट
सेक्टर-10, एनआईटी, बल्लभगढ़ और ओल्ड फरीदाबाद जैसे इलाकों में खुले कचरा प्वाइंट अब भी शहर की सुंदरता को धूमिल कर रहे हैं। बरसात में कचरा पानी में बहकर सड़कों पर फैल जाता है, जिससे जनस्वास्थ्य और ट्रैफिक दोनों पर असर पड़ता है।
जागरूकता अभियान, लेकिन सहभागिता का अभाव
नगर निगम आयुक्त ए. मोना श्रीनिवास और स्वच्छ भारत मिशन के अभियंता पदमभूषण द्वारा हाल में वॉल पेंटिंग्स, सेल्फी प्वाइंट्स और जन-जागरूकता अभियानों की शुरुआत की गई है। मगर जब तक RWA जैसी संस्थाओं की भागीदारी और प्रशासनिक कड़ाई नहीं होगी, तब तक कोई स्थायी सुधार नहीं हो पाएगा।
क्या अन्य शहरों से कुछ सीख सकता है फरीदाबाद?
अहमदाबाद, भोपाल और लखनऊ जैसे शहरों में कचरे का स्रोत पर पृथक्करण और तकनीकी आधारित निस्तारण पहले से लागू हैं। फरीदाबाद को इन शहरों के सक्सेस मॉडल्स से सीख लेकर रणनीतिक बदलाव करने होंगे।
निष्कर्ष
स्वच्छता सर्वेक्षण में मामूली सुधार भले ही राहत की खबर हो, लेकिन GFC में लगातार मिली शून्य रेटिंग एक चेतावनी से कम नहीं। जब तक नीतियों के साथ-साथ जमीनी अमल, संसाधनों की उपलब्धता और नागरिक सहभागिता सुनिश्चित नहीं होती, तब तक स्वच्छता सिर्फ रिपोर्टों तक ही सीमित रह जाएगी।