दिल्ली विधानसभा फांसी घर विवाद: क्या दिल्ली में इतिहास के साथ हुआ खिलवाड़?
दिल्ली की राजनीति में एक भयानक और शर्मनाक खुलासा हुआ है, जिसने हर किसी को सन्न कर दिया है। जिस दिल्ली विधानसभा का शर्मनाक खुलासा को ‘फांसी घर’ बताकर करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे, वो दरअसल एक मामूली ‘टिफिन रूम’ निकला। जी हाँ, आपने सही पढ़ा! एक ऐसा कमरा जहाँ कभी अंग्रेजों के लिए खाना लाया जाता था, उसे ‘ऐतिहासिक स्थल’ का दर्जा देकर न सिर्फ दिल्ली की जनता को गुमराह किया गया, बल्कि करोड़ों रुपये का सरकारी खजाना भी बहा दिया गया। यह सिर्फ एक झूठ नहीं, बल्कि दिल्ली विधानसभा का शर्मनाक खुलासा इतिहास के साथ एक भद्दा मजाक है, जो अब सत्ता के गलियारों से लेकर आम आदमी की जुबान तक पहुंच गया है।
इस पूरे मामले ने राजनीति में एक नया बवाल खड़ा कर दिया है। जिस ‘फांसी घर’ के नाम पर पिछली सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई थी, उसी पर अब वर्तमान सरकार ने सवालिया निशान लगा दिया है। विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने नेशनल आर्काइव्स के नक्शे और इतिहासकारों के हवाले से साफ कर दिया है कि यह ‘फांसी घर’ का दावा पूरी तरह से झूठा है। तो फिर सवाल उठता है कि आखिर क्यों और किसके इशारे पर जनता के सामने यह सफेद झूठ परोसा गया? क्या यह सिर्फ एक सियासी चाल थी या फिर इसके पीछे कोई गहरी साजिश छिपी है?
‘फांसी घर’ की सच्चाई: लिफ्ट शाफ्ट और वेंटिलेशन डक्ट का ड्रामा
विजेंद्र गुप्ता के अनुसार, जिसे ‘फांसी का फंदा’ और ‘ट्रेप डोर’ बताया गया था, वह असल में अंग्रेजों के लिए खाना लाने-ले जाने वाली एक लकड़ी की लिफ्ट थी। वहीं, लाल किले तक जाने वाली जिस ‘सुरंग’ की बात की गई, वह केवल एक वेंटिलेशन डक्ट है, जो उस जमाने के भवनों में आम थी। उन्होंने साफ कहा, “जहां विधानसभा में बहस होती है, वहां फांसी घर कैसे हो सकता है?”
इस पूरे मामले का पर्दाफाश तब हुआ जब वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ने ऐतिहासिक नक्शों की जांच करवाई। इन नक्शों में साफ तौर पर यह जगह ‘टिफिन रूम’ के रूप में दर्ज है। एक शिलापट्ट भी लगाया गया था, जिसमें 9 अगस्त 1942 का जिक्र था और इसे दर्शनीय स्थल बताया गया था। लेकिन अब यह सब एक धोखा साबित हो रहा है।
- क्या था दावा?
- विधानसभा परिसर में ‘फांसी घर’ है।
- यहां से लाल किले तक एक गुप्त सुरंग जाती है।
- यह आजादी के समय की एक ऐतिहासिक धरोहर है।
- सच्चाई क्या निकली?
- यह एक ‘टिफिन रूम’ था, जिसमें खाना लाने-ले जाने के लिए लिफ्ट लगी थी।
- ‘सुरंग’ असल में वेंटिलेशन के लिए बनाया गया डक्ट है।
- यह सिर्फ एक दिल्ली विधानसभा का शर्मनाक खुलासा है।
🏛️ इतिहास के साथ खिलवाड़: 1.04 करोड़ का हिसाब कौन देगा?
यह मामला सिर्फ ऐतिहासिक गलतियों तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस तथाकथित ‘फांसी घर’ के निर्माण और संरक्षण पर 1.04 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। अब सवाल यह है कि जनता के खून-पसीने की कमाई का यह पैसा क्यों और किस काम के लिए बहाया गया? क्या इस पैसे को दिल्ली विधानसभा का शर्मनाक खुलासा किसी और ज़रूरी काम में नहीं लगाया जा सकता था?
इस पैसे का हिसाब कौन देगा? क्या पिछली सरकार इस गलती की जिम्मेदारी लेगी या फिर इस पर भी राजनीति की रोटी सेंकी जाएगी? यह एक गंभीर मामला है जो सिर्फ एक ‘टिफिन रूम’ का नहीं, बल्कि सरकारी धन के दुरुपयोग का भी है। विधानसभा अध्यक्ष ने इस पूरे प्रकरण पर जांच की बात कही है। अगर दावा झूठा निकला तो इस संरक्षित स्थान को खत्म कर दिया जाएगा।
🗣️ सदन में हंगामा: जब ChatGPT भी बना बहस का हथियार
इस मुद्दे पर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। सत्ताधारी और विपक्षी दल आमने-सामने आ गए। विपक्ष की नेता आतिशी ने इस बहस को ‘समय की बर्बादी’ बताया और दिल्ली की अन्य समस्याओं पर चर्चा करने की मांग की। लेकिन सत्ता पक्ष ने इसे ‘विधानसभा की गरिमा’ से जुड़ा मुद्दा बताते हुए निंदा प्रस्ताव लाने की बात कही।
दिलचस्प बात यह रही कि दोनों पक्षों ने अपने दावे को सही साबित करने के लिए ChatGPT का सहारा लिया। एक विधायक ने ChatGPT के हवाले से दावा किया कि यहां फांसी घर था, तो दूसरे ने तंज कसते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि विपक्ष ने अपनी पूरी सरकार ही ChatGPT के जरिए चलाई है। यह देखकर लगता है कि डिजिटल युग में राजनीति भी कितनी बदल गई है।
- सदन में हुई मुख्य बहस:
- सत्ता पक्ष (भाजपा): इसे झूठ और सरकारी पैसे का दुरुपयोग बताया। जांच की मांग की और निंदा प्रस्ताव लाने की बात कही।
- विपक्ष (आप): इसे गैर-जरूरी बहस बताया। दिल्ली की अन्य समस्याओं पर ध्यान देने की मांग की।
- आम जनता: इस ड्रामे से निराश और गुस्से में है। वे जानना चाहते हैं कि इस झूठ के पीछे की असली वजह क्या है।
📜 विरासत का सम्मान या सियासी चाल?
दिल्ली विधानसभा भवन का अपना एक गौरवशाली इतिहास है। इसका निर्माण 1912 में हुआ था और यह देश की संवैधानिक और स्थापत्य विरासत का प्रतीक है। लेकिन इस तरह के झूठे दावों से इस विरासत की गरिमा को ठेस पहुंची है। एक ऐसी इमारत जो भारत के राजनीतिक विकास की गवाह रही है, उसे एक राजनीतिक विवाद का केंद्र बना दिया गया है।
यह सिर्फ एक ‘फांसी घर’ या ‘टिफिन रूम’ का मामला नहीं है। यह उससे कहीं ज्यादा गहरा है। यह उस राजनीति का हिस्सा है, जहाँ इतिहास को अपनी सुविधा के अनुसार गढ़ा जाता है और जनता की भावनाओं से खेला जाता है। यह एक ऐसा दिल्ली विधानसभा का शर्मनाक खुलासा है, जो दिखाता है कि सत्ता पाने और बनाए रखने के लिए किस हद तक जाया जा सकता है।
🌐 आगे क्या होगा?
इस मामले पर बुधवार को सदन में फिर चर्चा हुई और सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं। क्या इस जांच में कोई और बड़ा खुलासा होगा? क्या इस ‘झूठ’ के पीछे के असली मास्टरमाइंड सामने आएंगे? या फिर यह मामला भी धीरे-धीरे शांत हो जाएगा?
यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात तय है। इस पूरे प्रकरण ने दिल्ली की राजनीति को एक नया मोड़ दे दिया है। जनता अब सिर्फ वादों पर नहीं, बल्कि सबूतों पर विश्वास करना चाहती है। यह समय है जब नेताओं को यह समझना होगा कि जनता अब Delhi Vidhan Sabha ka sharmnak khulasa जैसे झूठ को बर्दाश्त नहीं करेगी।
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[Disclaimer: यह रिपोर्ट उपलब्ध समाचार लेखों पर आधारित है और इसमें किसी व्यक्ति या पार्टी पर कोई सीधा आरोप नहीं लगाया गया है। यह सिर्फ तथ्यों और दावों का विश्लेषण है।]