फरीदाबाद की धरती इन दिनों किसी डरावने सपने से कम नहीं दिखती। खेत जो कभी हरियाली से लहलहाते थे, अब यमुना के काले पानी में डूबे पड़े हैं। गांवों में खामोशी और घरों में आंसुओं का सैलाब है। सबसे बड़ा दर्द तब हुआ, जब मासूम 11 वर्षीय कृष्णा खेलते-खेलते इस बाढ़ के गहरे पानी में समा गया और हमेशा के लिए चला गया। किसान अपनी मेहनत की पूरी फसल बहते देखते रह गए, तो कहीं परिजन लापता अपनों की तलाश में तड़पते दिखे। यह सिर्फ़ बाढ़ नहीं, बल्कि ज़िंदगी और उम्मीदों को बहा ले जाने वाली त्रासदी है।
त्रासदी की शुरुआत: हथनी कुंड से छोड़ा गया पानी
फरीदाबाद और उसके आसपास का इलाका इन दिनों एक ऐसी त्रासदी से गुजर रहा है, जिसकी गूँज हर घर तक पहुँच चुकी है। हथनी कुंड बैराज से छोड़े गए 3.29 लाख क्यूसिक पानी ने फरीदाबाद, सोनीपत और पलवल जिलों की ज़िंदगी उथल-पुथल कर दी।
फरीदाबाद बाढ़ त्रासदी की वजह से करीब 18 हजार एकड़ फसलें डूब गईं – जिनमें धान, सब्जियां और मक्का की फसलें शामिल हैं। किसान अपनी मेहनत को लहरों में बहते देखते रहे और आंखों में बेबसी का समंदर भर आया।
गांवों में तबाही: फसलें डूबीं, लोग बेघर
सोनीपत में 10 हजार एकड़, फरीदाबाद में 3 हजार और पलवल में 5 हजार एकड़ में खेती बर्बाद हो गई।
दूल्हेपुर गांव के 100 से ज्यादा लोग बाढ़ के बीच फंस गए थे, जिन्हें प्रशासन ने किसी तरह राहत शिविरों में पहुंचाया। पर सवाल ये है कि क्या केवल बचा लेना ही काफी है, जब लोगों की पूरी रोज़ी-रोटी डूब चुकी हो?
किशोर की मौत और गांव का मातम
सबसे दर्दनाक खबर भूपानी गांव से आई, जहाँ 11 वर्षीय कृष्णा अपने दोस्तों संग खेलते हुए बाढ़ के पानी में डूब गया। तेज बहाव ने उसकी नन्ही ज़िंदगी को छीन लिया। शव एक किलोमीटर दूर मिला, और गांव मातम में डूब गया।
स्थानीय थाना प्रभारी ने चेतावनी दी – “बच्चों और पशुओं को खेतों की तरफ न जाने दें, ये पानी मौत का जाल है।”
लापता ससुर-दामाद और डर का माहौल
बसंतपुर गांव से सागर और बंटी नामक ससुर-दामाद रात को खाना लेने निकले और फिर लौटकर नहीं आए। आशंका है कि वे भी बाढ़ की लहरों में बह गए। घरों में दहशत है, और गांव में खामोशी का साया।
मंत्री का दौरा और मुआवज़े का ऐलान
फरीदाबाद पहुंचे राज्यमंत्री राजेश नागर ने हालात का जायज़ा लिया और मृतक कृष्णा के परिवार को 4 लाख रुपए मुआवज़े का ऐलान किया। उन्होंने कहा –
“किसी भी कीमत पर जोखिम न उठाएं। सरकार हर परिवार तक मदद पहुंचाएगी।”
ग्रामीणों की पीड़ा और प्रशासन की चुनौतियां
ग्रामीणों ने मंत्री के सामने बिजली कटौती, टूटी सड़कें, गंदे पानी और फसल नुकसान की बातें रखीं। प्रशासन राहत शिविरों और दवाइयों की व्यवस्था कर रहा है, लेकिन हालात इतने गंभीर हैं कि लोग अब भी डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं।
निष्कर्ष: बाढ़ से बचाव के सबक
फरीदाबाद में आई यह यमुना बाढ़ त्रासदी सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि इंसानों के लिए गहरी चेतावनी है। खेतों में डूबी 18 हजार एकड़ फसलें किसानों की मेहनत और उम्मीदों को बहाकर ले गईं। मासूम कृष्णा की दर्दनाक मौत ने हर मां-बाप के दिल में खौफ भर दिया है। वहीं लापता ससुर-दामाद की कहानी ने यह साफ कर दिया कि आपदा सिर्फ पानी नहीं लाती, बल्कि अपनों को खोने का ऐसा जख्म भी देती है, जो कभी नहीं भरता।
सरकार ने मुआवज़े और राहत का वादा तो किया है, लेकिन असल सवाल यह है कि क्या हर साल इस तरह की तबाही झेलना हमारी किस्मत है, या फिर अब समय आ गया है कि हम बाढ़ प्रबंधन और सुरक्षा को लेकर ठोस कदम उठाएं?
आज गांवों में सिर्फ पानी नहीं, बल्कि दर्द, मातम और डर की परछाई फैली है। इस त्रासदी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जब यमुना का कहर टूटता है, तो ज़िंदगी की सबसे बड़ी ताकतें भी लाचार हो जाती हैं।