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Gen Z Protest 2025: सबक नेपाल से और सवाल भारत के लिए

Gen Z Protest: नेपाल की सड़कों पर हाल ही में जिस तरह Gen Z ने गुस्से का इज़हार किया, उसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। 26 सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर प्रतिबंध से शुरू हुआ यह विरोध देखते ही देखते एक जनविद्रोह में बदल गया। नतीजा इतना बड़ा हुआ कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना पड़ा और देश राजनीतिक उथल-पुथल में डूब गया। यह घटना सिर्फ नेपाल की नहीं है — यह हर उस समाज के लिए चेतावनी है, जहां युवा आबादी बड़ी है और उनकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।


जब युवा बदलाव की ताक़त बनते हैं

युवा हमेशा से परिवर्तन के वाहक रहे हैं। नेपाल की सड़कों पर उतरे किशोर और कॉलेज छात्र केवल सोशल मीडिया की आज़ादी के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और राजनीतिक परिवारवाद के खिलाफ खड़े हुए। यह वही पीढ़ी है जो डिजिटल युग में पली-बढ़ी है और जिसे अपनी बात रखने के लिए माइक्रोफ़ोन की ज़रूरत नहीं, बल्कि मोबाइल और इंटरनेट ही काफी है।

भारत में भी इसका असर देखा जा सकता है। अन्ना हज़ारे का भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन युवाओं की भागीदारी के बिना इतना व्यापक नहीं बन सकता था। हाल के वर्षों में किसान आंदोलन से लेकर पर्यावरण आंदोलनों तक, सोशल मीडिया ने युवाओं को संगठित करने और संदेश पहुँचाने का सशक्त मंच दिया है। यह बताता है कि जब युवाओं को सही दिशा मिलती है, तो वे समाज को आगे ले जाने वाली सबसे मजबूत ताक़त बन जाते हैं।


जब गुस्सा अराजकता में बदल जाता है

लेकिन कहानी का दूसरा पहलू उतना ही गंभीर है। नेपाल में प्रदर्शन के दौरान संसद भवन में आग लगाई गई, नेताओं के घरों पर हमले हुए और पुलिस की गोलियों से कई लोग मारे गए। यह स्पष्ट करता है कि अगर असंतोष का समाधान समय रहते न हो, तो वही युवा ऊर्जा हिंसा और अराजकता का रूप ले सकती है।

भारत भी इस जोखिम से अछूता नहीं है। हमने आरक्षण विरोधी आंदोलनों से लेकर छात्र आंदोलनों में देखा है कि कब शांतिपूर्ण विरोध हिंसा में बदल जाता है। कई बार राजनीतिक दल युवाओं के गुस्से को अपने एजेंडे के लिए इस्तेमाल करते हैं, जिससे आंदोलन की मूल भावना कमजोर हो जाती है और नुकसान पूरे समाज को झेलना पड़ता है।


Gen Z की खासियतें और द्वंद्व

आज की Gen Z बाकी पीढ़ियों से अलग है।

  • वे तकनीक के बेहद जानकार हैं और मिनटों में संगठित हो सकते हैं।
  • वे बदलाव के लिए अधीर हैं और लंबा इंतज़ार स्वीकार नहीं करते।
  • वे ग्लोबल ट्रेंड्स से परिचित हैं और उनकी अपेक्षाएँ भी उसी पैमाने पर हैं।
  • लेकिन यही पीढ़ी कभी-कभी अल्पकालिक सोच और त्वरित परिणामों की संस्कृति में फँस जाती है।

यही वजह है कि वे किसी भी राष्ट्र के लिए एक साथ अवसर और चुनौती दोनों हैं।


भारत के लिए सबक

भारत आज दुनिया के सबसे युवा देशों में है। लगभग आधी आबादी 25 साल से कम उम्र की है। यह एक अभूतपूर्व ताक़त है, लेकिन इसे सही दिशा देना ही सबसे बड़ी चुनौती है। नेपाल का उदाहरण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि—

  • यदि बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता को हल नहीं किया गया तो भारत के युवाओं में भी असंतोष भड़क सकता है।
  • यदि भ्रष्टाचार और नेपोटिज़्म को काबू में नहीं किया गया तो युवाओं का विश्वास राजनीतिक व्यवस्था से उठ सकता है।
  • यदि उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश हुई तो सोशल मीडिया जैसे मंच उनका सबसे बड़ा हथियार बन सकते हैं।

भारत के पास अवसर है कि वह अपने युवाओं को खतरे के बजाय ताक़त में बदले। यह तभी संभव है जब शिक्षा, कौशल विकास और रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दी जाए और राजनीतिक व्यवस्था अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बने।


निष्कर्ष

नेपाल का Gen Z Protest हमें यह सिखाता है कि युवा शक्ति को नज़रअंदाज़ करना किसी भी लोकतंत्र के लिए घातक है। यह पीढ़ी न तो केवल खतरा है और न ही केवल वरदान। वह वही बनती है, जो सिस्टम उसे बनने देता है।

अगर युवा निराशा और गुस्से में सड़क पर उतरते हैं, तो सरकारें गिर सकती हैं और समाज अस्थिर हो सकता है। लेकिन यदि उन्हें अवसर, सम्मान और सही नेतृत्व दिया जाए तो यही पीढ़ी किसी भी देश को प्रगति की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती है।

भारत जैसे विशाल और युवा देश के लिए यही सबसे बड़ा सवाल है—क्या हम अपनी Gen Z को खतरा बनने देंगे, या उन्हें वह ताक़त बनाएँगे जो भारत को विश्वगुरु के सपने तक पहुँचा सके?

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