दिल्ली आवारा कुत्ते संकट: राजधानी दिल्ली इन दिनों सिर्फ ट्रैफिक और प्रदूषण के लिए ही नहीं, बल्कि एक और खतरनाक संकट के लिए सुर्खियों में है – दिल्ली आवारा कुत्ते। आंकड़े चौंकाने वाले हैं: सिर्फ 7 महीनों में 26,334 लोगों को कुत्तों ने काटा। अस्पतालों में रोजाना सैकड़ों लोग एंटी-रेबीज वैक्सीन लेने पहुंच रहे हैं। सफदरजंग अस्पताल में अकेले 700–800 मरीज रोज आते हैं।
इन घटनाओं ने न सिर्फ जनसुरक्षा को सवालों के घेरे में डाल दिया है, बल्कि दिल्ली नगर निगम (MCD) और सरकार के सामने एक वित्तीय और प्रशासनिक तूफान खड़ा कर दिया है।
1. सुप्रीम कोर्ट का आदेश और सरकारी चुनौतियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आदेश दिया कि सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर सुरक्षित शेल्टर में रखा जाए। सुनने में सरल लगने वाला यह आदेश असल में लॉजिस्टिक और बजट की जटिलताओं से भरा हुआ है। MCD के मुताबिक, दिल्ली में करीब 10 लाख लावारिस कुत्ते हैं, और इन्हें रखने के लिए 400 एकड़ जमीन चाहिए।
लेकिन राजधानी में इतनी जमीन ढूँढना आसान नहीं। और अगर जमीन मिल भी जाए, तो भोजन, चिकित्सा, सुरक्षा और स्टाफ पर हर साल लगभग 1,500 करोड़ रुपये का बोझ आएगा।
2.दिल्ली आवारा कुत्ते संकट: नसबंदी, बजट और जमीन की जंग
MCD के पास फिलहाल 20 नसबंदी केंद्र हैं, जिनमें से सिर्फ 13 काम कर रहे हैं। इस गति से सभी कुत्तों की नसबंदी पूरी करने में कई साल लग जाएंगे।
भोजन पर खर्च का अनुमान चौंकाने वाला है – हर कुत्ते पर रोज़ 40 रुपये, यानी सालाना लगभग 1,400 करोड़ रुपये सिर्फ खाने पर। नसबंदी का अलग 70 करोड़ रुपये का बिल है।
फिलहाल MCD इस पूरे संकट के लिए सिर्फ 15 करोड़ रुपये का वार्षिक प्रावधान कर रही है, जो समुद्र में बूंद जैसा है।
3. विवादित एनजीओ मॉडल और सुधार की मांग
फिलहाल नसबंदी का जिम्मा एनजीओ को दिया जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल हैं। कई विशेषज्ञ आरोप लगाते हैं कि कुछ एनजीओ एक कुत्ते का बंध्याकरण दिखाकर 10 का बिल बनाते हैं, जिससे सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि इस प्रक्रिया को “एनजीओ मुक्त” किया जाए और इसके बजाय निजी प्रोफेशनल कंपनियों को टेंडर देकर जिम्मेदारी सौंपी जाए।
4. मेनका गांधी का विरोध और वैकल्पिक सुझाव
पशु अधिकार कार्यकर्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अव्यावहारिक बताया। उनका कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर कुत्तों को हटाने से इकोलॉजिकल बैलेंस बिगड़ सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर कुत्ते हटे तो बंदरों, चूहों और अन्य जीवों का खतरा बढ़ जाएगा।
उन्होंने वैकल्पिक योजना सुझाई –
- सख्त नसबंदी और टीकाकरण
- पालतू कुत्तों की बिक्री पर नियंत्रण
- स्थानीय समितियों द्वारा निगरानी
- कुत्तों को उनके क्षेत्र में ही छोड़ना
5. जनता की प्रतिक्रिया और विरोध प्रदर्शन
कोर्ट के आदेश के खिलाफ इंडिया गेट पर सैकड़ों पशु प्रेमी और फीडर जमा हुए। उनका तर्क है कि समस्या का समाधान हटाना नहीं, बल्कि प्रबंधन करना है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मीडिया ने काटने की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है, और सही आंकड़ों के अनुसार 2024 में संदिग्ध रेबीज मौतों की संख्या 54 थी।
6. हेल्पलाइन योजना और भविष्य की रणनीति
MCD ने अब एक समर्पित हेल्पलाइन शुरू करने की योजना बनाई है, जिससे लोग कुत्तों की लोकेशन की सूचना दे सकेंगे। टीम मौके पर जाकर उन्हें पकड़कर शेल्टर में ले जाएगी। हालांकि जमीन की कमी इस योजना में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
7. निष्कर्ष: समाधान की राह कहाँ है?
दिल्ली आवारा कुत्ते संकट कोई साधारण प्रशासनिक समस्या नहीं है, यह पशु कल्याण, जनसुरक्षा और वित्तीय प्रबंधन – तीनों का टकराव है।
समाधान तभी संभव है जब अदालत, सरकार, स्थानीय निकाय और नागरिक साझा जिम्मेदारी निभाएँ। वरना यह संकट सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि हर गली, हर अस्पताल और हर घर के डर में नज़र आएगा।