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फरीदाबाद की हवा पहले से ही बहुत ख़राब है:भूमि अधिग्रहण का शर्मनाक खेल, नेताओं की गैर-जिम्मेदारी!

फरीदाबाद भूमि अधिग्रहण: क्या यह ‘विकास’ सच में विकास है या फिर जनता के साथ किया गया एक बड़ा छल? 4,500 एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि को औद्योगिक और आवासीय क्षेत्र में बदलने की योजना, वह भी ऐसे समय जब हवा पहले से ही जहरीली है, एक शर्मनाक फैसला है। किसानों की जमीनें, जो कि इस शहर के फेफड़े की तरह काम करती हैं, अब फैक्ट्रियों के लिए कुर्बान हो रही हैं।

हालांकि पुराने IMT के परिणाम हमारे सामने हैं — हवा और पानी दोनों प्रदूषित हुए, लेकिन इस बार भी वही पुरानी कहानी दोहराने की जिद क्यों? यह सवाल हर नागरिक को झकझोरना चाहिए।


1. फरीदाबाद की हवा कैसी हो गई है?

सांस लेना अब फरीदाबाद में खुद को खतरे में डालने जैसा हो गया है। PM 2.5 की मात्रा इतनी बढ़ चुकी है कि कई बार वो 1000 पार कर जाती है। ये कोई मामूली बात नहीं, ये सीधे हमारे फेफड़ों को मारने वाला ज़हर है। पर यहाँ के नेता? लगता है उनकी कोई फिक्र नहीं।

दरअसल, ये शहर ‘नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम’ के तहत वो शहर बन चुका है जहाँ हवा साफ़ नहीं। बावजूद इसके, नई फैक्ट्री लगाने और बड़े-बड़े ‘विकास’ के सपने दिखाए जा रहे हैं। और ये ‘विकास’ हमारी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहा है।


2. जमीन छीनने की जो कहानी है…

सरकार ने फरीदाबाद की हरी-भरी खेती वाली जमीनें औद्योगिक ज़मीन में बदलने की ठानी है। करीब 4,500 एकड़ ज़मीन जिसे किसान अपनी मेहनत से संवारते थे, अब फैक्ट्री और मकानों के लिए अधिग्रहित किया जा रहा है।

सोचिए, ये वो जमीनें हैं जो हवा को साफ करती हैं, जहां पेड़-पौधे हैं, और जिनसे ये शहर अपनी जान बचाता है। लेकिन अब इन्हें काटकर यहां और ज़हर फैलाने का प्लान है। ये वही गलती है जो पहले भी की जा चुकी है, और उसके नतीजे हम सब देख रहे हैं।


3. किसानों का क्या होगा?

किसानों को कहा गया है कि वे 31 अगस्त 2025 तक अपनी जमीन सरकार को दें। पर ये पूरा मामला उनकी सहमति के बिना हो रहा है। उनकी मेहनत की जमीन छीन ली जा रही है, उनके परिवारों की रोज़ी-रोटी खतरे में पड़ रही है।

वो जमीनें बंजर नहीं हैं, जिनसे उनका जीवन जुड़ा हुआ है। ये खेती की जमीनें हैं, जिनसे सब्ज़ियां, अनाज, फल उगते हैं। इन जमीनों का छिन जाना, उनकी आजीविका छीन लेना है।


4. नेताओं को क्या फर्क पड़ता है?

और सबसे बड़ा झटका ये है कि यहाँ के नेता इस सब से बिल्कुल गैर-जिम्मेदार हैं। चाहे PM 2.5 का स्तर 1000 को पार कर जाए, उनकी चिंता शून्य है। वे ये सोचने में भी असमर्थ हैं कि खुद तो यही लोग हैं जो जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं, उनका परिवार भी इसी हवा से गुजर रहा है।

फरीदाबाद को मिलें ₹107 करोड़ में से सिर्फ 40% का ही उपयोग हुआ, और उसमें से भी औद्योगिक प्रदूषण रोकने पर 1% से कम खर्च किया गया। मतलब साफ है — जनता की सेहत से ज्यादा नेताओं को अपने स्वार्थ की फिक्र है।


5. अब क्या करें हम?

फरीदाबाद की हवा को साफ़ करना और किसानों की जमीन बचाना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, हम सबकी भी है। हमें अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी, जागरूक होना होगा और ऐसे विकास का विरोध करना होगा जो हमारी सेहत और ज़िंदगी को नुकसान पहुंचाता हो।

हमें ऐसे रास्ते खोजने होंगे जहाँ विकास और पर्यावरण दोनों साथ-साथ चल सकें। हरित क्षेत्र बचाना होगा, प्रदूषण पर सख्ती से काबू पाना होगा। तभी हम अपने और आने वाली पीढ़ी के लिए एक सुरक्षित फरीदाबाद सुनिश्चित कर पाएंगे।

अधिक जानकारी के लिए आप NCAP की वेबसाइट देख सकते हैं, और हमारे प्रदूषण संबंधी रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं।

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