मौत से पहले का दर्दनाक सफर
Faridabad के न्यू हरी नगर कॉलोनी में रहने वाले ओमवीर सिंह, एक साधारण नौकरीपेशा इंसान, 15 अप्रैल 2025 को तेज पेट दर्द की वजह से क्लिनिक पहुँचे। वहां डॉक्टरों ने अल्ट्रासाउंड कर बताया कि उनकी पित्त की थैली में पथरी है। पर किसी ने सोचा भी नहीं था कि यही मामूली-सा ऑपरेशन उनकी ज़िंदगी निगल जाएगा।
पथरी का इलाज बना मौत का सौदा
ओमवीर को मैक्स स्टोन एंड सर्जिकल सेंटर, एनआईटी-3 में भर्ती कराया गया। परिवार ने 28 हज़ार रुपये जमा कर दिए। डॉक्टर मखीजा और बाहर से बुलाए गए डॉक्टर जसमीत ने ऑपरेशन किया। लेकिन ऑपरेशन के बाद भी ओमवीर की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती गई। दर्द बढ़ता गया, पेट फूलता गया। पत्नी कविता को डॉक्टरों ने भरोसा दिलाया कि बस कुछ दिन रुकना पड़ेगा। लेकिन असलियत बेहद डरावनी थी।
मेडिकल बोर्ड ने खोला डॉक्टरों का काला सच
जब सीटी स्कैन कराया गया तो सामने आया कि ऑपरेशन के दौरान ओमवीर की बड़ी आंत फट चुकी थी। यह कोई सामान्य गलती नहीं, बल्कि जानलेवा लापरवाही थी। मेडिकल नेग्लिजेंसी बोर्ड की जांच में साफ हो गया कि डॉक्टरों की गलती ने ओमवीर की जान ली। रिपोर्ट मिलते ही एसजीएम नगर थाना पुलिस ने केस दर्ज किया। पर सवाल उठता है—क्या इतने समय तक अस्पताल मरीज की जिंदगी से खेलता रहा?
परिवार का दर्द और अस्पताल की बेरहमी
कविता ने बताया कि पति की हालत गंभीर होने पर उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाना पड़ा। वहां 18 अप्रैल से 27 अप्रैल तक वेंटिलेटर पर रखा गया। मगर अंततः 27 अप्रैल को सुबह 3 बजे उनकी मौत हो गई। सबसे चौंकाने वाली बात—जैसे ही मामला बिगड़ा, डॉक्टर मखीजा और जसमीत अस्पताल से फरार हो गए। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि इंसानियत पर धब्बा है।
Faridabad में पहले भी उजागर हुए शर्मनाक मामले
यह घटना कोई पहली नहीं है। इससे पहले भी Faridabad में कई मासूम जानें डॉक्टरों की लापरवाही की भेंट चढ़ चुकी हैं। 2024 में आठ महीने की मासूम बच्ची की मौत भी इसी तरह की चूक का नतीजा थी। हर बार जांच होती है, केस दर्ज होता है, लेकिन सवाल वही रह जाता है—क्या दोषियों को सजा मिलेगी?
सवालों के घेरे में प्राइवेट अस्पताल
Faridabad के प्राइवेट अस्पतालों पर अब भरोसा करना कठिन हो गया है। पैसे के लालच में ज़िंदगी को दांव पर लगाने की ये घटनाएं समाज को झकझोर रही हैं। लोग पूछ रहे हैं—क्या अब इलाज कराने अस्पताल जाना मौत को दावत देना है? मेडिकल सिस्टम पर भरोसा डगमगा रहा है, और जनता जवाब मांग रही है।
निष्कर्ष: इंसानियत से बड़ा कोई इलाज नहीं
Faridabad के ओमवीर की मौत सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं है, यह पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। अस्पताल और डॉक्टर हमारे लिए जीवनदाता माने जाते हैं, लेकिन जब वही लापरवाही और पैसे की दौड़ में इंसानियत को भूल जाते हैं तो इसका नतीजा किसी की जान के रूप में सामने आता है। इस घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हमारे प्राइवेट अस्पताल सचमुच इलाज के मंदिर हैं या फिर मुनाफाखोरी के बाज़ार बन चुके हैं।
डॉक्टरों को यह समझना होगा कि उनके हर छोटे से छोटे निर्णय के पीछे किसी परिवार की उम्मीद, किसी बच्चे का भविष्य और किसी पत्नी की दुनिया जुड़ी होती है। सिर्फ दवा और ऑपरेशन से नहीं, बल्कि सच्ची संवेदना और ईमानदार कोशिश से ही ज़िंदगी बचाई जाती है। वहीं, समाज और आम लोगों को भी अपनी आंखें खोलनी होंगी। इलाज कराते समय सही जानकारी लेना, दूसरी राय लेना और अगर ज़रा भी लापरवाही दिखे तो तुरंत आवाज़ उठाना बेहद ज़रूरी है।
यह मामला सरकार और सिस्टम के लिए भी एक सवाल है—कब तक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट्स फाइलों में दबती रहेंगी और पीड़ित परिवार इंसाफ के लिए दर-दर भटकते रहेंगे? जब तक अस्पतालों और डॉक्टरों पर सख़्त कार्रवाई नहीं होगी और जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएँ रुकेंगी नहीं।
ओमवीर अब लौटकर नहीं आएंगे, लेकिन अगर उनकी मौत समाज को जगा सके, अगर यह घटना अस्पतालों को जिम्मेदार बना सके और अगर यह परिवारों को सतर्क कर सके—तो यही उनकी आत्मा के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। याद रखिए, इलाज तभी सच्चा है जब उसमें इंसानियत हो, वरना वह सिर्फ मौत का सौदा है।
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