Kishtwar Cloudburst ने जम्मू-कश्मीर की शांत घाटियों को मातम में बदल दिया। 14 अगस्त 2025 को मचैल माता यात्रा मार्ग पर हुए इस भीषण हादसे में 56 लोगों की मौत, 300 से अधिक लोग रेस्क्यू और सैकड़ों अब भी लापता हैं। तेज़ बहाव में मंदिर, लंगर और घर तिनके की तरह बह गए। सेना, NDRF और SDRF लगातार राहत कार्य में जुटी हैं, लेकिन मलबे में दबे लोग अब भी ज़िंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं। आगे पढ़िए – इस त्रासदी के वो डरावने पल जो आंखों के सामने मौत का मंजर खड़ा कर देते हैं।
1. किश्तवाड़ का वह काला दोपहर
14 अगस्त 2025, दोपहर का वक्त था। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले का चशोती गांव – जो मचैल माता यात्रा मार्ग का अहम पड़ाव है – अचानक एक भयावह हादसे का गवाह बन गया। आसमान से बरसते पानी के बीच पहाड़ों पर कहीं ऊपर बादल फटा और देखते ही देखते शांत घाटी मौत के सैलाब में बदल गई। मंदिर की ओर बढ़ते श्रद्धालु, लंगर में खाना बनाते कारीगर, सुरक्षा चौकी पर तैनात जवान – सब इस भीषण आपदा की चपेट में आ गए।
कुछ ही घंटों में 56 शव बरामद, 120 से अधिक लोग घायल और 200 से ज्यादा लापता बताए गए। मलबे और उफनते नालों के बीच गांव का आधा हिस्सा बह गया। गाड़ियों, मकानों और मंदिरों के अवशेष मलबे में ऐसे बिखरे पड़े थे, जैसे किसी ने खिलौनों को जमीन पर फेंक दिया हो।
2.Kishtwar Cloudburst: कैसे आया मौत का सैलाब
गवाह बताते हैं कि लगभग 12:30 बजे ऊपरी पहाड़ियों में अचानक गर्जन के साथ बादल फटा। चशोती नाले में पानी, कीचड़ और पत्थरों का ऐसा सैलाब आया जिसने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को निगल लिया। लंगर, जो उस समय श्रद्धालुओं से भरा था, पूरा बह गया। बर्तन, राशन, टेंट – सब पलभर में खत्म।
पानी के साथ बहे सिर्फ़ सामान नहीं, बल्कि इंसानी कहानियाँ भी – एक माँ अपने बच्चे को गोद में लिए थी, एक बुजुर्ग हाथ में माला लिए बैठे थे, कई यात्री अपनी अंतिम प्रार्थना पूरी भी नहीं कर पाए।
3. मचैल यात्रा का अचानक रुकना
25 जुलाई से शुरू हुई मचैल माता यात्रा, जो 43 दिन तक चलनी थी, इस हादसे के बाद तत्काल निलंबित कर दी गई। यात्रा मार्ग के कई हिस्से ध्वस्त हो चुके हैं, पुल बह गए हैं, और सुरक्षा चौकियों के जवानों तक का कोई पता नहीं। प्रारंभिक जांच में पता चला कि अधिकांश मृतक और घायल जम्मू-कश्मीर के निवासी थे, लेकिन अन्य राज्यों से आए श्रद्धालु भी इस त्रासदी का हिस्सा बने।
4. रेस्क्यू में जान जोखिम में डालते लोग
आपदा के तुरंत बाद सबसे पहले स्थानीय बाइक चालक और लंगर संचालक राहत के लिए आगे आए। बिना किसी सरकारी आदेश या उपकरण के, उन्होंने घायलों को 5 किलोमीटर दूर हमोरी लंगर तक पहुंचाया। स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मचारी, जो यात्रा में शामिल थे, मौके पर ही प्राथमिक उपचार देने लगे।
लगभग ढाई घंटे बाद, दो डॉक्टर और पैरामेडिकल टीम वहां पहुँची, लेकिन दवाइयाँ और उपकरण न होने से उन्हें भी सीमित मदद ही मिल पाई। सेना, NDRF और SDRF की टीम ने रात होते ही ऑपरेशन रोकना पड़ा, लेकिन सुबह फिर से मोर्चा संभाला।
5. सरकारी और सेना की प्रतिक्रिया
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू – तीनों ने इस आपदा पर गहरा दुख व्यक्त किया और हरसंभव मदद का भरोसा दिया।
- पीएम मोदी ने एक्स (Twitter) पर लिखा कि हालात पर कड़ी नजर रखी जा रही है और प्रभावितों को हर संभव सहायता दी जाएगी।
- गृह मंत्री ने उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से बात कर राहत कार्यों की गति बढ़ाने के निर्देश दिए।
- सेना की व्हाइट नाइट कोर और स्थानीय पुलिस ने अब तक 300 से अधिक लोगों की जान बचाई है।
6. बचाव के बीच उम्मीद की किरण
इस त्रासदी के बीच भी इंसानियत की मिसालें सामने आईं। एक स्थानीय युवक ने अपने घर को अस्थायी आश्रय में बदल दिया, जिसमें 15 से अधिक श्रद्धालुओं को रातभर रखा गया। एक और परिवार, जिनका लंगर बह गया था, उन्होंने बची हुई रोटियों और चाय से दर्जनों लोगों को राहत दी।
प्रशासन ने पड्डर में कंट्रोल रूम स्थापित कर हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने 13 डॉक्टर और 31 पैरामेडिक्स को अतिरिक्त रूप से तैनात किया है।
7. El Niño–La Niña का असर
इस साल के मानसून से पहले ही मौसम विभाग ने साफ़ चेतावनी दे दी थी कि Monsoon 2025 औसत से ज़्यादा सक्रिय रहेगा। जून की शुरुआत में जारी पूर्वानुमान में बताया गया था कि इस बार बारिश का स्तर 104% तक पहुंच सकता है, जो सामान्य से अधिक है। मौसम विशेषज्ञों ने इसके पीछे El Niño और La Niña दोनों के मिश्रित प्रभाव को अहम कारण बताया था। दरअसल, प्रशांत महासागर के तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण मौसम पैटर्न में बदलाव आता है — El Niño के समय भारत में बारिश कम होती है, जबकि La Niña के दौरान यह सामान्य से अधिक हो सकती है। इस साल इन दोनों का ट्रांज़िशन पीरियड होने के कारण बारिश के बेहद तीव्र और असमान पैटर्न देखने को मिल रहे हैं, जिसने पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और बादल फटने के खतरे को कई गुना बढ़ा दिया।
8. निष्कर्ष – तबाही के बाद की तस्वीर
किश्तवाड़ का यह बादल फटना सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सैकड़ों परिवारों की जिंदगी में आई अचानक और बेरहम टूटन है। मचैल यात्रा, जो श्रद्धा और उत्सव का प्रतीक थी, अब स्मृतियों में दर्द और आंसुओं का अध्याय बन गई है।
यह हादसा हमें यह भी याद दिलाता है कि पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक आपदाएं कभी भी दस्तक दे सकती हैं, और इसके लिए तैयारी, चेतावनी प्रणाली और सुरक्षित यात्रा मार्ग कितने जरूरी हैं।