पूर्व राज्यपाल और अनुभवी राजनेता सत्यपाल मलिक का मंगलवार, 5 अगस्त 2025 को दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। 78 वर्षीय सत्यपाल मलिक लंबे समय से बीमार चल रहे थे और उन्हें किडनी फेल्योर और गंभीर यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन के कारण मई से ही आरएमएल अस्पताल में भर्ती किया गया था। दोपहर 1:10 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की पुष्टि उनके सचिव कंवर सिंह राणा और अस्पताल प्रशासन ने की।
जाट पृष्ठभूमि से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति तक का सफर
24 जुलाई 1946 को बागपत (उत्तर प्रदेश) के हिसावड़ा गांव में जन्मे सत्यपाल मलिक का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनके पिता का निधन बचपन में ही हो गया था और उनका पालन-पोषण उनकी मां जगनी देवी ने किया। मेरठ कॉलेज से विज्ञान में स्नातक और एलएलबी करने के बाद उन्होंने 1965 में छात्र राजनीति में प्रवेश किया और 1966-67 में कॉलेज के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष बने।
विविध राजनीतिक दलों से जुड़ाव
अपने राजनीतिक सफर में सत्यपाल मलिक भारतीय क्रांति दल, लोकदल, कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी और भाजपा जैसे दलों से जुड़े रहे। 1980-84 और फिर 1986-89 तक वे राज्यसभा के सदस्य रहे। 1989 में वह जनता दल के टिकट पर अलीगढ़ से लोकसभा सांसद बने। 1990 में केंद्रीय राज्य मंत्री बनाए गए लेकिन 1990 में ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का सीएम बनाए जाने के विरोध में उन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।

राज्यपाल के रूप में ऐतिहासिक कार्यकाल
सत्यपाल मलिक ने बिहार, ओडिशा (अतिरिक्त प्रभार), जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय के राज्यपाल पदों पर कार्य किया। लेकिन उनका सबसे ऐतिहासिक कार्यकाल जम्मू-कश्मीर (2018-2019) का रहा, जब उनके ही कार्यकाल में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त करने का निर्णय लिया और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित कर दिया गया।
राज्यपाल रहते हुए उन्होंने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए, और पंचायत व निकाय चुनाव करवाकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनः सक्रिय किया।
बेखौफ वक्ता, किसान आंदोलन के समर्थक
अपने खुले विचारों और स्पष्ट वक्तव्यों के लिए पहचाने जाने वाले सत्यपाल मलिक किसान आंदोलन, पुलवामा हमले में सुरक्षा चूक, और किरू हाइड्रो प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर खुलकर बोलते रहे। उन्होंने भाजपा में रहते हुए भी किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता दी, जिससे पार्टी के अंदर और बाहर विवाद भी पैदा हुए। बाद में वह भाजपा के आलोचक बन गए थे।
अंतिम विदाई और शोक संदेश
उनके निधन पर जयंत चौधरी, अखिलेश यादव, राकेश टिकैत, प्रियंका गांधी, स्टालिन, और कई अन्य राजनीतिक एवं सामाजिक नेताओं ने शोक जताया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा, “सत्यपाल मलिक की आत्मा उनके पद के साथ नहीं मरी, बल्कि उनके फैसले इतिहास में दर्ज रहेंगे।”
रालोद नेता जयंत चौधरी अंतिम दर्शन के लिए अस्पताल पहुंचे और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
परिवार और व्यक्तिगत जीवन
सत्यपाल मलिक की पत्नी इकबाल मलिक एक पर्यावरणविद् हैं। उनके बेटे देव कबीर एक ग्राफिक डिजाइनर हैं और बहू निविदा चंद्रा भी पेशेवर क्षेत्र में सक्रिय हैं। उनका परिवार 1980 से दिल्ली में ही रह रहा है।
सत्यपाल मलिक का जीवन एक ऐसे राजनेता का उदाहरण है जो सत्ताधारी व्यवस्था के भीतर रहकर भी जनहित के मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने से पीछे नहीं हटे। उनका जाना न सिर्फ एक वरिष्ठ राजनेता की विदाई है, बल्कि भारतीय राजनीति में सच और साहस की आवाज़ का मौन हो जाना भी है।
राजनीति के साथ ईमानदारी: सत्यपाल मलिक की सबसे बड़ी विरासत
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन जितना लंबा रहा, उतना ही स्पष्ट रहा उनका चरित्र। वे अक्सर ऐसी बात कह जाते थे जो अन्य नेता कहने से डरते थे। उन्होंने कई बार सत्ता में रहते हुए भी अपने मत को निर्भीकता से रखा। चाहे वह कृषि कानूनों के मुद्दे पर केंद्र सरकार की आलोचना हो या पुलवामा हमले पर उठाए गए सवाल — मलिक ने दिखाया कि एक राजनेता सत्ता में रहकर भी ईमानदारी से अपनी बात रख सकता है। आज जब सच्चाई को दबाने की प्रवृत्ति राजनीति में बढ़ रही है, मलिक जैसी आवाजें और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। उनका यह साहस ही उन्हें आम नेताओं से अलग बनाता है और यही उनकी सबसे बड़ी विरासत है।